Thursday, June 13, 2019

लोकतंत्र कें धर्मनिरपेक्ष राजनीति में जाति, धर्म, संप्रदाय, क्षेत्रवाद व राजनैतिक हिंसा का विलय



लोकतंत्र में राजनीतिक दलों की विभिन्न भूमिकाओं को स्पष्ट करते हुए महात्मा गांधी ने  अहिंसा परमो धर्मः व देश की व्यवस्था सुचारू रूप से संचालित हो सके. कुछ ऐसे भावों को लेकर  देश में लोकतंत्र की स्थापना की थी । जिसमें राजनीतिक दल देश में व्याप्त समस्याओं को जनता के सामने रख कर जनता में जागरूकता पैदा करे, राजनीतिक दल देश के कानून निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करे,  राजनीतिक दल मतदाताओं के समक्ष अपनी छवि अच्छी बनाने के लिए जनता की सुख-सुविधा के लिए विभिन्न कार्य करते रहे राजनीतिक दल चुनाव लड़कर सरकार गठित करे,  चुनाव में हारने वाले दल विपक्ष की भूमिका अदा करे, सरकारी दल कल्याणकारी योजनाओं को जनता तक पहुँचाने का कार्य करे, एवं धर्मनिरपेक्ष सुशासन को बनाये रखें. राजतंत्र में भले ही राजा के पास सर्वाधिकार सुरक्षित रहता था, किन्तु प्रजातंत्र में प्रजा द्वारा चुनी गई सरकारों के पास भी सर्वाधिकार सुरक्षित होते है. और हर कार्य लोकतांत्रिक मान मर्यादाओं के साथ सर्वजन हिताय सर्वजन सुखाय के लिए किया जाता है.  सारे निर्णय एक व्यक्ति नहीं बल्कि जनप्रतिनिधियों की  पंचायत करती है. जिसका चुनाव जनता मताधिकार का इस्तेमाल करके करती है. हम सभी जानते हैं, कि पूरे विश्व में माञ भारत एक ऐसा देश जो अनेकता में एकता  पिरोने के साथ विभिन्न राज्यों से मिलकर बना है.  प्रत्येक राज्य की अपनी एक अलग संस्कृति व  परम्परा है, लेकिन सभी भारतवासी हैं. हर राज्य सरकार का मुखिया राज्य में रहने वाले सभी जाति धर्म संप्रदाय के लोगों को समान रूप से सुरक्षा एवं न्याय प्रदान कराने के लिए भी पूर्णतया जिम्मेंदार होती है. राज्य में हिंसा, अनीति, भ्रष्टाचार पर रोक लगाना राज्य सरकार एवं उसकी पुलिस का दायित्व होता है.  अगर वह अपने दायित्व का वहन न करके  अपनी राजनीतिक इच्छा पूर्ति के लिए स्वयं इसमें शामिल हो जाए तो वहीं पर लोकतांत्रिक मर्यादाएं एवं संवैधानिक लोकतांत्रिक सीमाओ का हनन  शुरू हो जाता है. यही कारण है, कि हमारे संविधान में आपात काल जैसी व्यस्था प्रतिपादन कर, वहां पर राष्ट्रपति शासन लागू कराने की व्यवस्था की गयी है . लेकिन  लोकसभा चुनाव के पहले से पश्चिम बंगाल राजनीतिक महत्वाकांक्षा के चलते अराजकता राजनीतिक हिंसा  वाला राज्य बनकर चर्चा का विषय बना हुआ है. सभी जानते हैं कि पश्चिम बंगाल में आजादी के बाद से करीब चार दशकों तक वामपंथी दलों का राज रहा है. और इसके बाद वामपंथियों को हराकर ममता बनर्जी की अगुवाई में टीएमसी की सरकार पिछले ढाई दशकों से शासन कर रही है. इस प्रदेश में मुख्य रूप से हिंदू मुस्लिम रहते हैं. यह राज्य बांग्लादेशी घुसपैठियों का चारागाह एवं शरणस्थली बनी हुई है. यहां पर शुरू से ही हिन्दू मुस्लिम राजनीति सत्ता तक पहुंचने का रास्ता बना हुआ है.  प्रतिदिन  हिंसा होना  यहां के लिए आम बात हो चुकी है. हिंदू मुस्लिम हिंसा और पुलिस का एक तरफा रवैया शुरू से ही इस प्रदेश में सांप्रदायिक तनाव को बढ़ा रहा है. आजादी के बाद से  वामपंथी एवं तृणमूल कांग्रेस के अलावा किसी भी दल को यहाँ पैर रखने की जगह नहीं मिल सकी है।वामदलों की जिस कार्यशैली का विरोध करके टीएमसी सत्ता में आई थी. आज उन्होंने खुद उसी कार्यशैली को अपना लिया है. भाजपा भले ही समय-समय पर केंद्रीय सत्ता में आती रही हो इसके बावजूद पश्चिम बंगाल में वह सेंधमारी करके अपनी स्थापना नहीं कर पा रही थी. जिसके कारण हिंदूवादी लोगों का पक्ष लेने वाला वहाँ पर कोई नहीं था. पिछले लोकसभा चुनाव में पहली बार वामदलों एवं टीएमसी के अभेद किले में भाजपा ने सेंधमारी ही नहीं की है बल्कि वहां की राजनीति में तहलका मचा दिया है. यहाँ पर लोकसभा चुनाव की शुरुआत ही राजनैतिक हिंसा से हुयी और शुरू से अंत तक हिंसा चुनावी नदी पार करने का माध्यम बना रहा. भाजपा  राजनेताओं को चुनाव प्रचार में हिस्सा लेने से रोकने की कोशिश की गई तो अंतिम दौर में भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष की रैली पर जानलेवा हमला भी किया गया. राजनैतिक गुंडई पर उतारू टीएमसी के कुछ विधायक लोकसभा चुनाव परिणाम आने के बाद भाजपा की पूर्व घोषणा के अनुरूप उनका साथ छोड़ कर मोदी अमित शाह वाली भाजपा में शामिल हो चुके हैं. जिसकी वजह से ममता दीदी की नींद उड़  गई है. और वह गुस्से के चलते लोकतांत्रिक मान मर्यादाओं को भूल चुकी है. चुनाव के दौरान जिस भाषा शैली एवं गुस्से का इजहार वहां की मुख्यमंत्री द्वारा  अख्तियार करके लोगों को उकसाकर चुनाव को उग्र एवं हिंसक बनाया गया है उसे किसी भी दृष्टि से लोकतांत्रिक मर्यादाओं के अनुरूप नहीं कहा जा सकता है. क्योंकि लोकतंत्र में मतदाताओं का वोट पाने के लिए अच्छे कार्यों से उनका दिल जीता जाता है न कि साम्प्रदायिक उन्माद फैलाकर जंगलराज बनाया जाता है. जाति धार्मिक एवं सांप्रदायिक भावनाओं को भड़का कर मतदाताओं का वोट हासिल करना लोकतंत्र की हत्या करने जैसा है. मतगणना के बाद से पश्चिम बंगाल राजनीतिक अति महत्वाकांक्षा एवं भावी राजनैतिक भविष्य को सुरक्षित करने की दृष्टि से बेगुनाहों की जान का दुश्मन बनता जा रहा है.  अब तक दर्जनों लोग यहां पर राजनीतिक हिंसा के शिकार होकर अपने रोते बिलखते परिवार को छोड़कर इस दुनिया से जा चुके हैं.   पश्चिम बंगाल के आगामी 2021में होने वाले विधानसभा चुनाव को देखते हुए पश्चिम बंगाल में पहली बार स्थापित होने भाजपा जहां एड़ी से चोटी का जोर लगाए हुए है वही ममता जी की टीएमसी उसके जमते पैरों को ऐनकेन प्रकारेण उखाड़ने में सारी लोकतांत्रिक मान मर्यादाओं को ताख पर रखकर जुटी हुई है. यही कारण है कि वहां पर राजनीतिक खूनी हिंसा सत्ताधारी टीएमसी एवं भाजपा समर्थकों के बीच हो रही है. चुनाव के बाद से लगातार भाजपा समर्थकों पर हमले एवं हत्याएँ हो रही हैं. वहां पर विवाद और उसके बाद खूनी हिंसा राजनीतिक झंडे लगाने उखाड़ने और जय श्री राम बोलने के नाम पर हो रही है. हमारे देश के तमाम मुसलमान भाइयों को भले ही राम के नाम से इतनी नफरत न हो जितनी नफरत नेता ममता जी को जय श्री राम बोलने से पैदा हो गई है. वहां की पुलिस सरकार के इशारे पर कार्य करने के लिए काफी दिनों से बदनाम चल रही है. यह भी  दो राजनैतिक दलों की राजनीतिक महत्वाकांक्षाa वहां पर रहने वाले दो दिलों के बीच नफरत को बढ़ाकर  कौमी एकता एवं आपसी सौहार्द को बिगाड़ने  में सहायक बन रही है. जिसे तत्काल रोका जाना चाहिए जो लोकतंत्र के लिए बहुत जरूरी है. पश्चिम बंगाल में दो राजनीतिक दलों के बीच हो रही खूनी हिंसा लोकतांत्रिक मर्यादाओं के अनुरूप नहीं है. अगर राज्य में जनता की चुनी हुई सरकार जनता की सुरक्षा न कर सके और कानून का राज खत्म हो जाए तो वहां पर लोकतांत्रिक मर्यादाओं को स्थापित करने का दायित्व केंद्र सरकार को होता है. पश्चिम बंगाल में हो रही राजनीतिक हिंसा पर तत्काल रोक लगनी चाहिए और अगर राज्य सरकार इस कार्य सफल नहीं होती है. तो निश्चित तौर से जनता के हित में केंद्र सरकार को इसमें दखल देना लोकतांत्रिक व्यवस्था के हित में सहायक व वरदान साबित होगा. Shraddhanand Mishra Panel Producer ETV Bharat

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